**** 20 फरवरी 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने साफ कर दिया था कि जून 1948 तक भारत की सत्ता उत्तरदायी हाथों में हस्तांतरित कर दी जाएगी। वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के पास इस काम के लिए सोलह महीनों का वक्त था। लेकिन वे बहुत जल्दी में थे। उन्होंने इस काम को लगभग साढ़े तीन महीने में ही निपटा 3 जून 1947 को भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त घोषित कर दी।
3 जून और 15 अगस्त के बीच बहुत थोड़ा सा फासला था। विभाजित भारत की सीमाएं तय होनी थीं। जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन आह्वान के चलते 16 अगस्त 1946 से कलकत्ता से शुरू हुए सांप्रदायिक दंगे बिहार, यूनाइटेड प्रॉविंस (उत्तर प्रदेश) को चपेट में लेते हुए मार्च 1947 में पंजाब को अपनी लपटों में झुलसा रहे थे। अंग्रेज भागने की जल्दी में थे। उधर ऊपर से नीचे तक प्रशासन और पुलिस बल विभाजित और लुंज - पुंज था। विदेशी दासता से मुक्ति की खुशी थी लेकिन अशांति - असुरक्षा - अराजकता की आशंका लोगों को बेचैन किए हुए थी।
*** 15 अगस्त की तारीख को लेकर पंडितों - ज्योतिषियों के अपने तर्क और गणित थी।वे चाहते थे कि भले एक ही दिन के लिए सही लेकिन इसे टाला जाए। ....ये ज्योतिषी ही थे, जिन्होंने अभिजीत मुहूर्त का उल्लेख करते हुए 14 अगस्त की रात 11.51 से 12.39 के मध्य का समय भारत की स्वतंत्रता के लिए शुभ बताया था। उनका कहना था कि कि अंग्रेजी कलेंडर भले रात में तिथि बदले लेकिन हिन्दू पत्रे- पञ्चाङ्ग में सूर्योदय से ही तिथि बदलती है।"
***तो याद कीजिए आधी रात को आजादी की घोषणा की और पंडित जवाहर लाल नेहरू के उस ऐतिहासिक भाषण " नियति से साक्षात्कार " की जिसमें उन्होंने कहा था, " हमारा भारत लंबी निद्रा और संघर्ष के बाद पुनः जागृत, जीवंत,मुक्त और स्वतंत्र खड़ा है। हम नए सिरे से इतिहास लिख रहे हैं और अब जिस इतिहास का हम निर्माण करेंगे , उस पर दूसरे लिखने को बाध्य होंगे। जिस समय सारी दुनिया नींद के आगोश में होगी, उस समय भारत उज्ज्वल,नवजीवन और चमचमाती स्वतंत्रता प्राप्त कर रहा होगा।"
विभाजन बड़ा काम : फिर जल्दबाजी क्यों ?
विभाजन का काम भारी-भरकम था। उससे तमाम मुश्किलें जुड़ी हुई थीं। माउंटबेटन के पास 30 जून 1948 तक का वक्त था। फिर उन्होंने हड़बड़ी में पंद्रह अगस्त की तारीख क्यों तय की ? मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने सवाल का सही जवाब हासिल करने के लिए लंदन में 1971 में माउंटबेटन से भेंट की थी। उनका कहना था, "चीजें मेरे हाथ से निकल रही थीं। पंजाब में सिख विद्रोह पर उतारु थे। कलकत्ते में भयंकर कत्लेआम हो चुका था। पूरे देश में साम्प्रदायिकता की आग भड़क रही थी। सबसे बढ़कर ब्रिटिशों की यह घोषणा अपना असर दिखा रही थी कि वे जा रहे हैं। इसीलिए मुझे लगा कि हम जितनी जल्दी चले जायेंगे, उतना ही अच्छा रहेगा। प्रधानमंत्री लॉर्ड एटली इससे खुश नही थे, लेकिन वे सभी अधिकार मेरे हाथ में दे चुके थे।" अपने बचाव में माउंटबेटन ने सी. राजगोपालाचारी के उस संदेश का भी जिक्र किया , " अगर आप उस वक्त सत्ता न सौंप देते तो आपके पास सौंपने को कुछ शेष न रहता। "
15 अगस्त की ही तारीख तय करने की क्या थी वजह ?
क्या 15 अगस्त की तारीख तय करने की वजह दो साल पहले इसी दिन यानी 15 अगस्त 1945 को मित्र देशों की सेना के सामने जापान का समर्पण और विश्वयुद्ध की समाप्ति का शुभ दिन होना था ? नैयर से बातचीत में माउन्टबेटन के प्रेस सचिव रहे कैम्पवेल जॉनसन ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा था कि माउन्टबेटन चाहते थे कि भारतीयों के सामने ब्रिटेन का आत्मसमर्पण इसी शुभ दिन की याद में हो।" लेकिन ब्रिटेन के विदेश विभाग के लोग इस तर्क से सहमत नही थे। उनके मुताबिक माउन्टबेटन ब्रिटिश रॉयल नेवी में कोई ऊंचा पद चाहते थे। इसके लिए वे जल्द से जल्द भारत का अपना अभियान पूरा कर लेना चाहते थे। भारत से वापसी में उन्हें अपना मनचाहा पद मिला और वे दक्षिण पूर्व एशिया के नेवल कमांडर नियुक्त किये गए।
जो माउंटबेटन चाहें वही सही ?
मौलाना अबुल कलाम आजाद ने माउन्टबेटन से जल्दबाजी न करने और आजादी की आगे कोई अन्य तारीख़ तय करने को कहा था। " इंडिया विंस फ्रीडम " में मौलाना ने लिखा, लॉर्ड माउंटबेटन ने खुद तीन महीनों की अवधि निर्धारित कर ली , जिसमें उन्हें विभाजन का काम पूरा करना था। मैंने खुलकर अपने संदेह प्रकट किए तथा बताया कि इतनी जटिल योजना को इतने कम समय में पूरा करना बेहद मुश्किल है।" विभाजन को मंजूरी के सवाल पर मौलाना का कहना था, " जिस निर्णय को सभी लोग गलत मानते थे, उस निर्णय को इतनी शीघ्रता से करने का क्या मतलब था ? मैंने बार - बार कहा था कि जब तक कोई सही समाधान नहीं निकलता तब तक इंतजार करना बेहतर होगा। परंतु दुर्भाग्य मेरे साथियों ने साथ नहीं दिया। शायद एक तारीख 15 अगस्त निश्चित किए जाने से जादू सा प्रभाव हुआ और उसने सबको इतना सम्मोहित कर लिया कि लॉर्ड माउंटबेटन जो कहें वही सही है और उसे चुपचाप मंजूर कर लें।
तो क्या जल्दबाजी की वजह जिन्ना की जानलेवा बीमारी ?
क्या इस जल्दबाजी की और भी कोई वजह हो सकती थी? " फ्रीडम एट मिडनाइट " में डोमनीक लापियर और लैरी कॉलिंस लिखते हैं, " यह एक्सरे की एक फ़िल्म थी। फ़िल्म के बीच दो काले गोल धब्बे थे। लगभग टी टी की गेंद के बराबर। दोनो धब्बों के चारों ओर एक कटी-फ़टी मोटी सी गोट लगी हुई थी। इन दो धब्बों के ऊपर बहुत से छोटे-छोटे सफेद धब्बे पसलियों के ऊपरी सिरे तक चले गए थे। ये काले गोल धब्बे इस बात के सूचक थे कि उतनी जगह के फेफड़े खोखले हो चुके हैं। सफेद धब्बों की गोट उन क्षेत्रों की सूचक थी, जहां फेफड़े खराब होना शुरु हो गए हैं। क्षय इतना व्यापक था कि जिस आदमी का एक्सरे था, वह मुश्किल से दो-तीन साल जी सकता था।" उन दिनों टी बी जानलेवा बीमारी हुआ करती थी। जून 1946 का यह एक्सरे मुहम्मद अली जिन्ना का था। लिफाफे में रखी यह फ़िल्म उनके भरोसेमंद दोस्त डॉक्टर जाल. आर.पटेल के पास बेहद गोपनीय तरीके से सुरक्षित थी। जिन्ना को अंग्रेजों की पूरी मदद थी। जिन्ना मुस्लिम लीग के पर्याय थे। माउन्टबेटन को भी पता था कि पाकिस्तान का निर्माण जिन्ना के रहते ही मुमकिन होगा। अंग्रेज पाकिस्तान की हिमायत में थे। जिन्ना की जानलेवा बीमारी की माउंटबेटन को जानकारी दी। उनके पूर्वाधिकारी लॉर्ड वेवल ने भी अपनी 10 और 28 फरवरी 1947 की डायरी में जिन्ना को बीमार आदमी लिखा। जिन्ना 11 सितंबर 1948 को मरे। डॉक्टर उनकी कम बची जिंदगी का संकेत दे चुके थे। अंग्रेज इससे वाकिफ थे। इससे अनजान अगर कोई था तो वे थे, कांग्रेस के नेता। उन्हें पता होता तो मुमकिन था कि वे और इंतजार करते ?
ज्योतिषियों ने 15 अगस्त के लिए कहा अनिष्टकारी
रेडियो पर आजादी की तारीख 15 अगस्त घोषित किए जाने के साथ ही पंडित - ज्योतिषी भी अपने पंचांग खोलकर बैठ गए। फ्रीडम एट मिडनाइट " में डोमनीक लापियर और लैरी कॉलिंस ने लिखा, " पवित्र नगरी काशी और दक्षिण के ज्योतिषियों ने तुरंत घोषणा कर दी कि 15 अगस्त का दिन इतना अशुभ है कि भारत के लिए अच्छा यही होगा कि हमेशा के लिए नरक की यातनाएं भोगने के बजाय देश एक दिन और अंग्रेजों का शासन सहन कर लें।कलकत्ता के स्वामी मदनानंद ने तिथि की घोषणा सुनते ही अपना नवांश निकाला और ग्रहों, नक्षत्रों और राशियों की स्थिति देखते ही चीख पड़े, कैसा अनर्थ किया है इन लोगों ने !"
सीमांकन का जिम्मा भारत से अनजान रेडक्लिफ को
3 जून और 15 अगस्त के बीच सिर्फ 73 दिन का फासला था। दो देशों के बीच सब कुछ बंटना था। सीमाओं का निर्धारण सबसे बड़ा काम था। किसे जिम्मेदारी दी जाए ? संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिनिधियों को ये काम विदेशी हस्तक्षेप की आशंका में अंग्रेज सौंपने को तैयार नहीं थे। हाउस ऑफ लॉर्ड्स के तीन सदस्यों के प्रस्ताव पर भी सहमति नहीं बन पाई। फिर सर सिरिल जॉन रेडक्लिफ का नाम आगे आया। वे सिविल मामलों के मशहूर वकील थे। जिन्ना लंदन में उनकी प्रतिभा देख - सुन चुके थे। वी.के.कृष्ण मेनन की सलाह पर नेहरू भी उनके नाम पर राजी हो गए। एक वकील के तौर पर काबिलियत के साथ ही रेडक्लिफ के पक्ष में जो बात थी कि वे इसके पहले कभी भारत नहीं आए थे। इसलिए उन्हें तटस्थ माना गया। लेकिन यही उनकी कमजोरी भी थी , क्योंकि उन्हें ऐसे क्षेत्र में काम करना था , जहां के भूगोल, आबादी, धर्म और संस्कृति से वे पूरी तौर पर अनजान थे।
आजादी पहले सीमाएं बाद में !
रेडक्लिफ 8 जुलाई 1947 को भारत पहुंचे। 10 जुलाई से उनका काम शुरू हुआ, जिसे दस अगस्त तक पूरा किया जाना था। बाद में उन्हें दो दिन का और वक्त दिया गया। पंजाब और बंगाल के बाउंड्री कमीशन में चार - चार न्यायिक सदस्य थे। रेडक्लिफ अध्यक्ष थे। इन चार सदस्यों में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के दो - दो प्रतिनिधि थे। रेडक्लिफ किसी कमीशन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले सके। उनके सामने बंटवारे वाले दोनों प्रांतों और जिलों के अधूरे नक्शे और 1941 की दोषपूर्ण जनगणना के आंकड़े थे। पंजाब के अंग्रेज गवर्नर ने विभाजित नौकरशाही और अशांति - अराजकता के संकट के बीच इतने कम वक्त में मांगी गई सूचनाएं देने में असमर्थता जताई। बंगाल के भी कमोवेश यही हालात थे। दोनों कमीशनों ने जल्दी - जल्दी में जनता की आपत्तियां निपटाईं और अपनी रिपोर्टें रेडक्लिफ को सौंप दीं। आगे का फैसला मानकों और ब्योरों को दरकिनार करते हुए जल्दबाजी के बोझ तले दबे रेडक्लिफ के विवेक पर था। 12 अगस्त को उन्होंने रिपोर्ट वायसराय को सौंप दी। 13 अगस्त को वायसराय पाकिस्तान पहुंचे , जहां अगले दिन उन्हें पाकिस्तान की आजादी के जश्न में हिस्सा लेना था। दोनों देशों की सीमाओं की घोषणा को अशांति की आशंका में 15 अगस्त तक के लिए टाला गया। 16 अगस्त को माउंटबेटन ने दोनों देशों के प्रतिनिधियों से रिपोर्ट पर औपचारिक चर्चा की और फिर अगले दिन 17 अगस्त को सीमा निर्धारण का राजपत्र प्रकाशित हुआ। इस तरह पाकिस्तान और भारत को आजादी पहले मिली। उनकी सीमाएं बाद में तय हुई। तब आज जैसा सूचना क्रांति का दौर नहीं था। सहज ही समझा जा सकता है कि सीमावर्ती इलाकों में बसी आबादी को जानने में कितना वक्त लगा होगा कि उनका अपना कौन देश है ?
आजादी की घोषणा आधी रात को क्यों ?
आजादी की तारीख 15 अगस्त ही बरकरार रही। लेकिन ज्योतिषियों द्वारा बताई गई अनिष्ट की आशंका कहीं न कहीं डरा रही थी। काट के लिए उनसे ही सहायता भी ली गई। उपाय पूछा गया। फिर आजादी की घोषणा अर्धरात्रि को गई। ''' ये ज्योतिषी ही थे, जिन्होंने अभिजीत मुहूर्त का उल्लेख करते हुए 14 अगस्त की रात 11.51 से 12.39 के मध्य का समय भारत की स्वतंत्रता के लिए शुभ बताया था। उनका कहना था कि कि अंग्रेजी कलेंडर भले रात में तिथि बदले लेकिन हिन्दू पत्रे- पञ्चाङ्ग में सूर्योदय से ही तिथि बदलती है।" तो याद कीजिए आधी रात को आजादी की घोषणा की और पंडित जवाहर लाल नेहरू के उस ऐतिहासिक भाषण " नियति से साक्षात्कार " की जिसमें उन्होंने कहा था, " हमारा भारत लंबी निद्रा और संघर्ष के बाद पुनः जागृत, जीवंत,मुक्त और स्वतंत्र खड़ा है। हम नए सिरे से इतिहास लिख रहे हैं और अब जिस इतिहास का हम निर्माण करेंगे , उस पर दूसरे लिखने को बाध्य होंगे। जिस समय सारी दुनिया नींद के आगोश में होगी, उस समय भारत उज्ज्वल,नवजीवन और चमचमाती स्वतंत्रता प्राप्त कर रहा होगा।"